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रविवार, 18 नवंबर 2012

उस हि्न्दु हृदय सम्राट बाला साहेव ठाकरे को शत शत नमन

हिन्दुत्व के महानायक,भारतीयता के प्रतीक,परम राष्ट्रवादी चिन्तक ही नही परम क्रान्तिकारी भी  साथ ही आधुनिक समय में शायद शिवा जी महाराज उनकी आत्मा में विराजमान थे ।ऐसे महान पुरुष बाला साहेव ठाकरे को मैं सम्पूर्ण हिन्दु समाज की और से अश्रुपूरित श्रद्धाञ्जली का अर्पण करता हूँ।भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे।
बाला साहेव ठाकरे एक ऐसा नाम है जिसे भारत का प्रत्येक व्यक्ति चाहैं अनपढ़ ही क्यों न हो अवश्य ही जानता है।हो सकता है आप उनके विचारों से सहमत हो या न हो किन्तु यह निश्चित ही है कि आप उन्हैं भूल नही सकते एसे महामानव थे बालासाहेव ठाकरे।
बाल ठाकरे महाराष्ट्र वासियों के दिलों में तो राज करते ही थे क्योंकि यही वह शख्स था जिसने मुम्वई या महाराष्ट्र वासियों के दुखः दर्द को अपने दिल में महसूस किया और उनकी रोटी की तरफ निगाह करने बाले किसी भी प्रान्त वासी को खुले तौर पर कहा कि अपने अपने राज्य में जाकर खुद का विकास करो और महाराष्ट्र की जनता को उसके संसाधनो का उपयोग करने दो वैसे हो सकता है कोई उनकी इस बात से सहमत हो या न हो किन्तु इतना तय है कि उन्हौने पूरे देश के लोगो को अपनी इस  उग्रवाणी से चेताया जरुर था कि अपने राज्य का विकास ही आपका विकास है।हाँ हो सकता है कि यह वात कुछ लोगो को राष्ट्रवाद के विरोध में लगती दिखाई दे लैकिन आप अपने घर की उन्नति करे एसा कहना मैरी नजर में भी गलत नही है।आपके घर का विकास ही आपके बच्चों को समृद्ध बनाता है।उन्हौने लुंगी हटाऔ पुंगी बजाओं का नारा दिया हो या यह कहा हो कि विहारी मेहनती होते है तो अपने यहाँ जाकर महेनत करे यह सब उन्हौने इसी लिए कहा कि महाराष्ट्र के साधन पर तो महाराष्ट्र के लोगों का ही हक है हम उनका बँटवारा नही कर सकते औऱ एक वड़े के नाते यह राय भी अप्रत्यक्ष रुप में दी कि लालू जब तुम्हारे राज्य को बरवाद कर रहा है तो क्यों उसे हटाकर अच्छा नेता लाने का प्रयास करते जिससे आपको कहीं बाहर मजदूरी करने न जाना पड़े।यह विल्कुल स्वदेशी अपनाओ वाला महात्मा गाँधी व संघ का सिद्धान्त ही था जो उन्हौने थोड़े उग्र रुप में प्रयोग किया था।
अपने समय के वेवाक विचारकों में रहे बाला साहेब हमेशा राजनेताओं को उनके राष्ट्रद्रोही कार्यों के लिए फटकारते रहै।लैकिन बाह री भारत की सत्ता  व भारत के संविधान जिसने उन्है भी न छोड़ा और उन पर अपनी वेवाकी के लिए मताधिकार व प्रतिनिधि बनने का अधिकार छीन लिया लैकिन वे कौन सा कभी प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति वनने की इच्छा दिल में संजोये थे वे तो वैसे ही भारत की अधिकांश जनता के दिल पर राज करते थे ।उन्हैं कोई जरुरत भी नही थी कि वे मुख्यमंत्री ,प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति वनते।उन्हौने समाज सुधार का वह कार्य चुटकियों में कर डाला जिसे करने में सत्ता सम्पन्न भारत का मुख्मंत्री ,प्रधान मंत्री व राष्ट्रपति जैसे पदों पर बैठे लोग नही कर पा रहै तो फिर प्रशाशनिक अधिकारियों की तो विसात ही क्या है।उन्हौने मुम्वई का आतंक का पर्याय बन चुके मुम्बईया अन्डर वर्ल्ड का एसा प्रतिकार किया जिसका प्रतिकार करने के लिए स्वतंत्र भारत की कोई भी सरकार साहस भी नही कर पा रही थी।और यह वह शेर था जिसके कारण कलाकारों, उद्यमियों, व्यापारियों,और दूसरे अन्य सम्पन्न तवकों से चौथ वसूली करने बाले अपने अपने विलों में घुस गये थे।और बालासाहेव ने  स्वंय को सभ्य समाज के लिए समृद्धि ,शान्ति,सुरक्षा व संरक्षा के पर्याय के एसे पद पर प्रतिष्ठित करा दिया कि लोग उनके सैनिकों को  वर्दी वालों से अधिक सम्मान देने लगे।और उनमें स्वयं ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ही नही  भारत के प्रधानमंत्री व ऱाष्ट्रपति से भी वड़ी शक्तियाँ परिलक्षित होने लगीं।उनमें आज के दौर में भी कहीं लालच रंचमात्र भी दिखाई नही दिया ।और यही कुछ कारण थे जिसके कारण मुम्वई की 24 घण्टे रफ्तार भरी जिन्दगी जो कि दूना काम करने की ताकत रखती है को भी बाला सहाव का केवल एक आह्वान बंद कर सकने की शक्ति रखता था।नही तो मुम्वई की रफ्तार न तो सीरियल बम ब्लास्ट से रुक सकी थी और न ही किसी भी नरसंहार से लैकिन बाला सहाव ही वो शख्स थे जिनमें वह अदम्य साहस था कि मुम्बई की रफ्तार को पलक झपकते ही रोक दें।
बाल ठाकरे दुनिया के अन्दर भी यह ताकत रखते थे जो ताकत दिल्ली नही रखती।दिल्ली की बात को कभी पाकिस्तान या आतंकबादियों ने नही माना व समझा जबकि वह एक एसा शेर था जिसके कारण आतंक के साम्राज्य बादियों का भी दिल धड़धडा़ कर टूटने को हो जाता था।सन् 1992-1993 मेँ कश्मीरी आतंकवादी कठमुल्लोँ ने फतवा दिया था कि, अगर अमरनाथ यात्रा जारी रखी गई तो प्रत्येक यात्री को बम से उड़ा दिया जाएगा, और तत्कालीन खान्ग्रेस सरकार वहाँ तैनात 13 लाख सैनिकोँ की जान दाँव पे लगाकर छिप गई  थी, तब बाल ठाकरे ने कहा था कि मुल्लोँ लगाओ अमरनाथ यात्रा पर रोक, मैँ देखता हूँ कि कैसे कोई
कठमुल्ला हज जाने के लिए बंबई(मुंबई) तकआता है, इस बात का एसा असर हुआ कि  आज तक अमरनाथ यात्रा जारी है।उसी प्रकार बाला सहाव का यह बयान भी काविले तारीफ है कि मुझे सेना दे दो में भारत की सभी समस्याओं का अन्त कर दूँगा


आज के युग  में जवकि प्रत्येक नेता केवल कुर्सी के लालच में हिन्दुत्व का अपमान करने पर तुला है यह एसे सिंह थे जिन्हौने कभी बोटों के लालच में भारतीयता का विरोध नही किया और उनके रहते कोई भी इस बात का साहस भी न जुटा सका अतः वह सच्चे शब्दों मे हिन्दु हृदय सम्राट  ही थे।उन्हौने कभी किसी प्रकार का लालच नही दिखाया जो भी किया डंके की चोट पर किया।किसी भी सरकारी पद पर न होते हुये भी सभी लोगों विरोधियों व पक्षधरों सभी की श्रद्धा़ञ्जलि पाना उनकी उसी ताकत का परिणाम है।विरोधी मुसलमानों की श्रद्धाञ्जलि का अर्पण कैवल और केवल शिव सेना की ताकत का ही प्रमाण है जो ताकत उन्हौने अपने संपूर्ण जीवन को लगाकर प्राप्त की थी।अब उद्धव ठाकरे जी को वह ताकत प्राप्त करने के लिए अपने पिता के पद चिन्हों पर ही चलना होगा वैसे इस सख्सियत ने केवल उद्धव को ही नही अनेकों युवाओ को एसा मकसद प्रदान किया है जो कभी वीर शिवा ने मराठों को प्रदान किया था।वास्तव में एक एसे सेना पति का कथन था जिसने प्रत्येक वयान पर कैवल बौलना नही सीखा था अपितु प्रयोग भी किया था।आज जवकि वे हमारे साथ नही हैं हमारे भारत के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है। हमने एक एक सिंह सेनापति खो दिया है।जो हमारे दिलों में हमेशा रहैगा प्रभु उन्हैं वह स्थान प्रदान करे जो उसने वीर शिवा ,महाराणा प्रताप ,गुरु गोविन्द सिंह , आदि को प्रदान किया है।
राहुल रंजन नामक ब्लागर ने नब भारत टाइम्स पर उनके लिए अपने श्रद्धा सुमन इस प्रकार अर्पित किये हैं- क्योंकि यह प्रेरणा प्रद शब्द है तो मैने अपने पाठकों के लिए साभार वहाँ से ले लिए हैं ।
प्रत्येक मनुष्य जीवन में किसी न किसी से प्रेम तो करता ही है लेकिन प्रेम में जब समर्पण की भावना जुड़ जाती है तब एक शक्ति का निर्माण होता है और इस शक्ति के जरिये मनुष्य किसी को भी अपना बना सकता है। कोई भी इंसान अपने जीवन में यूं ही सफल नहीं हो जाता। सफलता की कहानी बहुत लंबी और मुश्किलों से भरी होती है। बालासाहेब केशव ठाकरे की मुश्किलों भरी जिंदगी और सफलता की कहानी के पछे का जो सत्य है वो है मुंबई,महाराष्ट्र प्रेम।23 जनवरी 1926 को मध्यप्रदेश के बालाघाट में जन्में बाल ठाकरे ने अपना करियर फ्री प्रेस जर्नल में बतौर कार्टूनिस्ट शुरु किया था. इसके बाद उन्होंने 1960 में अपने भाई के साथ एक कार्टून साप्ताहिक 'मार्मिक' की भी शुरुआत की. मोटे तौर पर बालासाहेबने अपने पिता केशव सीताराम ठाकरे के  महाराष्ट्र के एक अलग भाषाई राज्य केनिर्माण की संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के राजनीतिक दर्शन का ही अनुसरण किया.अपने कार्टून साप्ताहिक 'मार्मिक' के माध्यम से, वह गुजराती, मारवाड़ीएवं दक्षिण भारतीय के मुंबई में बढ़ते प्रभाव के खिलाफ अभियान चलाया.अंततः 1966 में ठाकरे ने शिवसेना पार्टी का गठन मराठीओ के लिए मुंबई केराजनीतिक और व्यावसायिक परिदृश्य में जगह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया। बाल ठाकरे स्वयं को एक कट्टर हिंदूवादी और मराठी नेता के रूप में प्रचारित कर महाराष्ट्र के लोगों के हितैषी के रूप में अपने को सामने रखते रहे हैं और इनकी इसी छवि के लिए ये हिन्दु हृदय सम्राट के नाम से भी जाने जाते है।बालासाहेब ने राजनीती में जो भी चाल चली उसकी एक ही केन्द्रबिदु रही है और वह है मुंबई,महाराष्ट्र प्रेम। यही वह मोह है जिसके कारण बाल ठाकरे ने बाहर से आकर मुंबई बसने वाले लोगों पर कटाक्ष करते हुए महाराष्ट्र को सिर्फ मराठियों का कहकर संबोधित किया और खासतौर पर दक्षिण भारतीय,बिहार और उत्तर प्रदेश से मुंबई पलायन करने वाले लोगों को मराठियों के लिए खतरा बता,बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र के लोगों को उनके साथ सहयोग न करने की सलाह दी.बालासाहेब की मुंबई और महाराष्ट्र प्रेम और उनके विवादस्पद वयान ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई। उनकी हर एक चाल में एक और विशिष्ट छवि स्वजातीय उत्कृष्टता में विश्वास रखना भी दिखती आई है और उनकी इसी सोच ने उन्हें हिंदूवादी नेता से बहुत हद तक प्रांतवाद एवं भाषावाद की राजनीती तक सिमित कर रख दिया। बालासाहेब की मुंबई और महाराष्ट्र प्रेम ने राजनीती का एक अलग सूत्र प्रांतवाद एवं भाषावाद की राजनीती का भी आविष्कार किया.यह बेशक लोकतान्त्रिक भावनाओं को दूषित करता है जो बहस का मुद्दा बना रहेगा परन्तु अविष्कारों के इस युग में बालासाहेब की राजनीती का यह सूत्र काबिल-ए तारीफ है। हमारे देश में राजनीती को तो लोग सदैब हीन दृष्टिकोण से देखते आयें है लेकिन लोकतंत्र में भले ही राजा का चयन जनता करती है पर राज करने के लिए नीति तो अपनानी ही होगी और यही राजनीती किसी के लिए गन्दी,अहितकारी होगी तो किसी के लिए अच्छी,हितकारी भी। जब कोई किसी प्रेमी के प्रेम पर संदेह करता है और उस प्रेमी को अपना प्रेम साबित करना है तो निश्चित तौर पे यह एक भारी बोझ बन जाता है और जो कुछ भी आप करते है,उसकी व्याख्या देना एक पीड़ादायक बोझ होता है.संशय और प्रश्नवाचक रुपी यही परिस्थिति आपको नासाज़ प्रतीत होने लगती है और परिणामस्वरूप यही एक दूरी पैदा करती है,एक विकृति पैदा करती है,एक घृणा पैदा करती है और इसी प्रीत की हठ का परिणाम है बालासाहेब की भाषावाद एवं प्रांतवादकी राजनिति।बालासाहेब शायद देश की राजनितिक हताशा,असुरक्षित सामाजिक परिवेश और मुंबई की व्यवसायिक हैसियत को अच्छी तरह समझते थे और पूरी दुनिया को अपनी इस समझ यानि हिंदुत्व,भाषावाद एवं प्रांतवादमिश्रित राजनिति से बखूबी अवगत कराया। प्रेम हरी को रूप है त्यों हरी प्रेम स्वरूप। प्रेम हरि का स्वरूप है,इसलिए जहां प्रेम है,वहीं ईश्वर साक्षात रूप में विद्यमान हैं।बिना कोई राजनितिक पद के हमेशा सिंघासन पे विराजमान रहने वाले बालासाहेब ने मुंबई,महाराष्ट्र से अगाध प्रेम के जरिये पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लिया। माइकल जैक्सन से लेकर अमिताभ बच्चन और लता मंगेशकर तक। क्षेत्रीय स्तर पर राजनीति कर राष्ट्रीय हैसियत हासिल करना कोई आम बात नहीं है और बालासाहेब की मुंबई,महाराष्ट्र से अगाध प्रेम की इसी पराकाष्ठा ने मराठी राजनीती में बाल ठाकरे की सख्सियत को अमर कर दिया।
 जीवन में ज्ञान और प्रेरणा कहीं से भी एवं किसी से भी मिल सकती है और बालासाहेब की मुंबई,महाराष्ट्र से अगाध प्रेम की राजनीति भी कम प्रेरणादायक नहीं है.बिना कुर्सी या पद की अभिलाषा की राजनीती अगर सीखनी है तोबालासाहेब से सीखे।ये वही राजनीती है जिसने आज भी पूरी मुंबई को एक धागे में पिरोकर रखा है। क्या ख़ास और क्या आम,आज सभी मातोश्री में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को आतुर है।हम श्री बालासाहेब ठाकरे की सेहत के लिए प्रार्थना करते हैं कि वो जल्द से जल्द ठीक हो जाएं।

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